Wednesday, September 25, 2013

अन्डे में प्रोटीन या मांसाहारी बनाने की चाल ...

डॉक्टर बहुत कहते है के अन्डे खाना बहुत आवश्यक है और उनका हिसाब किताब प्रोटीन वाला है !

...प्रोटीन इसमें ज्यादा है विटामिन A ज्यादा है । हमारे डॉक्टर जो पढाई करते है जैसे MBBS , MS, MD ये पूरी पढाई से आई है मने यूरोप से आयें हैं और यूरोप में जो लोग होंगे उनके पास मांस और अन्डे के इलावा और कुछ नही होगा । तो उनकी जो पुस्तके है उनमे वो ही लिखा जायेगा जो वहाँ उपलब्ध है । और यूरोप में पूरा इलाका बहुत ठंडा है !6 महीने बर्फ पड़ी रहती है ! सब्जी होती नही , दाल होती नही हैं ! पर अंडा बहुत मिलता है कियोंकि मुर्गियां बहुत है ।

अब हमारे देश में भी वो ही चिकित्सा पढ़ा रहे है क्यूंकि आजादी के 67 साल बाद भी कोई कानून बदला नहीं गया ! पर उस चिकित्सा को हमने हमारे देश की जरुरत के हिसाब से बदल नही किया मने उन पुस्तकों में बदवाल होना चाहिए , उसमे लिखा होना चाहिए भारत में अन्डे की जरुरत नही है कियोंकि भारत में अन्डे का बिकल्प बहुत कुछ है । पर ये बदवाल हुआ नही और डॉक्टर वो पुस्तक पढ़ कर निकलते है और बोलते रहते है अन्डे खाओ मांस खाओ । आयुर्वेद की पढाई पढ़ कर जो डॉक्टर निकलते है वो कभी नही कहते के अन्डे खाओ । अन्डे में प्रोटीन है पर सबसे जादा प्रोटीन तो उड़द की दाल में है , फिर चने की डाल , मसूर की डाल ; अन्डे में विटामिन A हैं पर उससे ज्यादा दूध में है ।

निचे दिए गए लिंक पे जाके विडियो देखे :
http://www.youtube.com/watch?v=nXaQ0JS5iIs



हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!

क्या आप जानते हैं कि..... हमारे देश का नाम ............... “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????

साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप" था....?????

परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....?????? 

दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????

क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!

लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।

आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।

अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।

परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .

इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।

चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।

इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.........।

ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....

हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।

हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।

परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।

इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।

परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।

परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????

सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!

आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????

इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।

हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।

ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।

परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?

विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।

और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।

क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।

इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!


रामायण-और-महाभारत-में-भी-परमाणु-बम-का-प्रमाण

रामायण-और-महाभारत-में-भी-परमाणु-बम-का-प्रमाण
जी हाँ सही पढ़ रहे हैं आप । आदि अनंत एवं सनातन के प्रभु विश्वकर्मा जो कि नाना प्रकार के दैवीय अस्त्र-शस्त्र के निर्माणकर्ता रहे हैं। प्रमाणों के अनुसार देवराज इन्द्र के लिए बनाया गया ऋषि दधीचि की अस्थियों का वज्र एक ऐसा ही महा विनाशकरी हथियार था। आज के आधुनिक कालीन में जब विज्ञान परमाणु बमों की खोज कर रहा है। ये सब हिन्दू सभ्यता में पहले ही खोजे जा चुके हैं और सारे निर्माणों के कर्ता-धर्ता भगवान विश्वकर्मा हैं जिनके हम वंशज हैं।
आधुनिक भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है। उससे पूर्व के इतिहास को ‘प्रमाण-रहित’ कहकर नकार दिया जाता है। हमारे ‘देशी अंग्रेजों’ को यदि सर जान मार्शल प्रमाणित नहीं करते तो हमारे ’बुद्धिजीवियों’ को विश्वास ही नहीं होना था कि हड़प्पा और मोहन जोदड़ो स्थल ईसा से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं और वहाँ पर ही विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया था।
विदेशी इतिहासकारों के उल्लेख-
विश्व की प्राचीनतम् सिन्धुघाटी सभ्यता मोहन जोदड़ो के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं। जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहाँ की गलियों में नर-कंकाल पड़े थे। कई अस्थि पिंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे मानों किसी विपत्ति नें उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था।
उन नर कंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो-ऐक्टीविटी के चिन्ह थे जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह पाये गये थे उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।
मोहनजोदड़ो की भौगोलिक स्थिति-
मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है। उसके चारों ओर दो किलोमीटर के क्षेत्र में तीन प्रकार की तबाही देखी जा सकती है जो मध्य केन्द्र से आरम्भ होकर बाहर की तरफ गोलाकार फैल गयी थी। पुरातत्व विशेषज्ञों ने पाया कि मिट्टी चूने के बर्तनों के अवशेष किसी ऊष्णता के कारण पिघल कर एक दूसरे के साथ जुड़ गये थे। हजारों की संख्या में वहां पर पाये गये ढेरों (मलवों) को पुरात्तव विशेषज्ञों ने काले पत्थरों ‘ब्लैक-स्टोन्स’ की संज्ञा दी। वैसी दशा किसी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की राख के सूख जाने के कारण होती है। किन्तु मोहन जोदड़ो स्थल के आस पास कहीं भी कोई ज्वालामुखी की राख जमी हुयी नहीं पाई गयी।
निष्कर्ष यही हो सकता है कि किसी कारण अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री तक पहुँची जिसमें चीनी मिट्टी के पके हुये बर्तन भी पिघल गये। अगर ज्वालामुखी नहीं था तो इस प्रकार की घटना अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही घटती है।
महाभारत के आलेख-
इतिहास मौन है परन्तु महाभारत युद्ध में महासंहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान व रथों के साथ एक एटामिक प्रकार के युद्ध का उल्लेख भी मिलता है। महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था और उसमें चार पहिये लगे थे। देव-दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस सेनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं। इस युद्ध के वृतान्त से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं अपितु इन्द्र के वज्र अपने चक्रदार रफलेक्टर के माध्यम से संहारक रूप में प्रगट होता है। उस अस्त्र को जब दागा गया तो एक विशालकाय अग्नि पुंज की तरह उसने अपने लक्ष्य को निगल लिया था। वह विनाश कितना भयावह था इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः-
‘‘अत्यन्त शक्तिशाली विमान से एक शक्तियुक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिसकी चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया। उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे। उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे। बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे। कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए। उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रों सहित जलधाराओं में डुबा लिया’’
उपरोक्त वर्णन दृश्यरूप में हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है।
एक अन्य वृतान्त में श्रीकृष्ण अपने प्रतिद्वन्दी शल्व का आकाश में पीछा करते हैं। उसी समय आकाश में शल्व का विमान ‘शुभः’ अदृष्य हो जाता है। उसको नष्ट करने के विचार से श्रीकृष्ण नें एक ऐसा अस्त्र छोड़ा जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्ष्य कर सकता था। आजकल ऐसे मिसाईल्स को हीट-सीकिंग और साऊड-सीकरस कहते हैं और आधुनिक सेनाओं द्वारा प्रयोग किये जाते हैं।
राजस्थान से भी-
प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है, वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे।
‘लक्ष्मण-रेखा’ प्रकार की अदृष्य ‘इलेक्ट्रानिक फैंस’ तो कोठियों में आज कल पालतू जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जाती हैं, अपने आप खुलने और बन्द हो जाने वाले दरवाजे किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं। यह सभी चीजें पहले आश्चर्य जनक थीं परन्तु आज एक आम बात बन चुकी है। ‘मन की गति से चलने वाले’ रावण के पुष्पक-विमान का ‘प्रोटोटाईप’ भी उड़ान भरने के लिये चीन ने बना लिया है।
निःसंदेह रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो पृथक-पृथक ऋषि थे और आजकल की सेनाओं के साथ उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। वह दोनांे महाऋषि थे और किसी साईंटिफिक फिक्शन के थ्रिल्लर-राईटर नहीं थे। उनके उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि तथ्य क्या है और साहित्यिक कल्पना क्या होती है ? कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की आवश्यकता होती है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना, हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि, अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है, पता नहीं हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं।


जिन हिंदुओं को सिख इतिहास का नहीं पता तो वो ये बातें जान ले ।

जिन हिंदुओं को सिख इतिहास का नहीं पता तो वो ये बातें जान ले । कई हिन्दू भाई सिखों के बारे मे बहुत सी गलत फहमियाँ रखते है 
उसकी वजह कुछ ओर नहीं हमे स्कूल मे पढ़ाई जा रही सेकुलर शिक्षा है । जिसमे मुझे पढ़ाया जाता है के अकबर महान था वहाँ साथ मे ये लाइन क्यों नहो जोड़ी के वो हिन्दू राजाओं से जबरन उनकी लड़कियों की डोली(निकाह) मांगता था । 
स्कूल की किताब मे क्यो नहीं जोड़ा के दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह महाराज ने इस्लामिक जेहादियों से हिंदुओं की रक्षा करते हुए अपना सारा वंश दान कर दिया मतलब अपने 2 बेटों को युद्ध मे शहादत दिलवाई ओर 2 बेटों को जिंदा दीवार मे चिनवाने के दर्द सहा ।पर इस्लाम के आगे कभी घुटने नहीं टेके ।6वी पातशाही महाराज को मुसलमानो ने गरम तवे पे पर बैठाया पर उन्होने इस्लाम को नहीं माना । ये सब बातें मुझे स्कूल की किताबों मे क्यों नहीं पढ़ाई गयी ।
84 मे हम हिन्दू सिखों को कॉंग्रेस ने आपस मे लड़वाया । फिर भी पता नहीं सिख भाई कैसे खांग्रेस को वोट देते है ।
सभी हिन्दू भाई सिख इतिहास खुद भी पढे ओर अपने बच्चों को भी पढ़ाएँ व अपनी अशिक्षा को दूर कर युवा पीढ़ी मे साहस ओर देश भगती का गुण पैदा करे
जय श्री राम * सत श्री अकाल साहेब



मोहन परासरण

"..मैं भगवान राम पर विश्वास करता हूँ और मुझे भरोसा है कि रामसेतु पर भगवान राम के चरण पड़े थे, इसलिए मैं रामसेतु तोड़ने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की पैरवी नहीं कर सकता..." 

इन कड़े शब्दों के तमाचे के साथ सरकार के महाधिवक्ता मोहन परासरण ने काँग्रेस-डीएमके को झटका देते हुए खुद को मामले से अलग कर लिया है... 

==================
अभी तक तो यूपीए को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही तमाचे लगाता रहता था, अब खुद उनके अपने अधिकारी भी समझने लगे हैं कि यह सरकार सिर्फ हिन्दू-द्रोह और हिन्दू-द्वेष की घटिया राजनीति कर रही है...

पारासरन साहब बधाई के हकदार हैं...


साकार का अर्थ ....

साकार का अर्थ हुआ जिसका कोई आकार हो हाथ पैर मुह वगैरह और निराकार का मतलब हुआ जिसका कोई आकार ना हो पर मित्रो आपको जानकार आश्चर्य होगा की वेद का इश्वर इन् दोनों से परेह ना तो वो साकार है और ना ही निराकार है क्योंकि साकार का मतलब मै लिख चूका हु पर निराकार का मतलब क्या हुआ निराकार का मतलब जिसका कोई आकर ना हो मतलब आकाश तत्व यदि नही तो मुझे बताइए की आकाश तत्व का क्या आकर है किसी के पास है उत्तर 
और ये आकाश तत्व ही समय की रचनाकर्ता है आइन्स्टीन के अनुसार दोनों में छुपा हुआ कनेक्शन है एक रहेगा तो दूसरा अपने आप आ जायेगा और अगर एक नही रहेगा तो दूसरा अपने आप मिट जायेगा
और जब इश्वर आकाश तत्व से हट जाता है तो वो अपने आप सभी आयामों से हट जाता है तब वो किसी आयामों की श्रृंखला में नही आता है तो उस तरह आइन्स्टीन का इश्वर अगर कही है तो वो वेद का ही इश्वर हो सकता है और कही का नही क्योंकि वेद के इश्वर ने ही इस आकाश तत्व की रचना की है
आकाश तत्व का रंग काला है अब आप बताइए कृष्ण का रंग क्या था जी हां इनके श्याम रंग का रहस्य ठीक यही है की सम्पूर्ण आकाश तत्व उनमे ही समाहित है वैसे कही कही उनका रंग नीला भी दिखाया जाया है उनकी मूर्तियों में इसका रहस्य ये है की दिन में आकाश का रंग नीला होता है और रात में कला इसका सिर्फ यही अर्थ की आकाश तत्व उनमे ही समाहित है उनमे से ही निकला है
साभार nitin mishra


Wednesday, September 18, 2013

चरणामृतका का महत्व..

अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.
क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की.कि चरणामृतका क्या महत्व है.
शास्त्रों में कहा गया है
अकाल मृत्युहरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप- व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है। जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता"
जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,
जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ,
और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया.वह चरणामृत गंगा जी बन गई,
जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है,
ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की.
जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी .
जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है -
"चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है।
चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।
कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है।
चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है।
उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।
इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।
ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है।
कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं।
चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?
दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है।
इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए



शास्त्री जी ज़िंदाबाद !

ये वही शास्त्री जी है जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते समय लाहौर पे ऐसा कब्ज़ा जमाया था की पुरे विश्व ने जोर लगा लिया लेकिन लाहौर देने से इनकार कर दिया था | आख़िरकार उनकी एक बड़ी साजिस के तहत हत्या कर दी गयी | जिसका आज तक पता नहीं लगाया जा सका है |

1. जब इंदिरा शाश्त्रीजी के घर (प्रधान मंत्री आवास ) पर पहुची तो कहा कि यह तो चपरासी का घर लग रहा है, इतनी सादगी थी हमारे शास्त्रीजी में...

2.जब 1965 मे पाकिस्तान से युद्ध हुआ था तो शासत्री जी ने भारतीय सेना का मनोबल इतना बड़ा दिया था की भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी थी और पाकिस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा जीत लिया था ।

3.जब भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा तो अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए कहाथा की भारत युद्ध खत्मकर दे नहीं तो अमेरिकाभारत को खाने के लिए गेहू देना बंद कर देगातो इसके जवाब मे शास्त्री जी ने कहाकीहम स्वाभिमान से भूखे रहना पसंद करेंगे किसी के सामने भीख मांगने की जगह । और शास्त्री जी देशवासियों से निवेदन किया की जब तक अनाज की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक सब लोग सोमवार का व्रत रखना चालू कर दे और खाना कम खाया करे ।

4.जब शास्त्री जी तस्केंत समझोते के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी के कहा की अब तो इस पुरानी फटी धोती कीजगह नई धोती खरीद लीजिये तो शास्त्री जी ने कहा इस देश मे अभी भी ऐसे बहुत से किसान है जो फटी हुई धोती पहनते है इसलिए मै अच्छे कपडे कैसे पहन सकता हु क्योकि मै उन गरीबो का ही नेता हूँ अमीरों का नहीं और फिरशास्त्री जी उनकी फटी पुरानी धोती को अपने हाथ से सिलकर तस्केंत समझोते के लिए गए ।

5. जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था तो शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा की युद्ध मे बहुत रूपये खर्च हो सकते है इसलिएसभी लोग अपने फालतू केखर्च कम कर देऔर जितना हो सके सेना को धन राशि देकर सहयोगकरें । और खर्च कम करने वाली बात शास्त्री जी ने उनके खुद के दैनिक जीवन मे भी उतारी । उन्होने उनके घर के सारे काम करने वाले नौकरो को हटा दिया था और वो खुद ही उनके कपड़े धोते थे, और खुद ही उनके घर की साफ सफाई और झाड़ू पोंछा करते थे ।

6. शास्त्री जी दिखन?े मे जरूर छोटे थे पर वो सच मे बहुत बहादुर और स्वाभिमानी थे ।

7. जब शास्त्री जी की मृत्यु हुई तो कुछ नीचलोगों ने उन पर इल्ज़ाम लगाया की शास्त्री जी भ्रस्टाचारी थे पर जांच होने के बाद पता चला की शास्त्री जी केबैंक के खाते मे मात्र365/- रूपये थे । इससे पता चलता है की शास्त्री जी कितने ईमानदार थे ।

8. शास्त्री जी अभी तक के एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री रहे हैं जिनहोने देश के बजट मे से 25 प्रतिशत सेना के ऊपर खर्च करनेका फैसला लिया था । शास्त्री जी हमेशा कहते थे की देश का जवान और देश का किसान देश के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं इसलिए इन्हे कोई भी तकलीफ नहीं होना चाहिए और फिर शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया ।

9.जब शास्त्रीजि तस्केंत गए थे तो उन्हे जहर देकर मार दिया गया था और देश मे झूठी खबर फैला दी गयी थी की शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई । और सरकार ने इस बात पर आज तक पर्दा डाल रखा है ।

10 शास्त्री जी जातिवाद के खिलाफ थे इसलिए उन्होने उनके नाम के आगे श्रीवास्तव लिखना बंद कर दिया था ।

हम धन्य हैं की हमारी भूमि पर ऐसे स्वाभिमानी और देश भक्त इंसान ने जन्म लिया । यह बहुत गौरव की बात है की हमे शास्त्री जी जैसे प्रधान मंत्री मिले ।
जय जवान जय किसान !
शास्त्री जी ज़िंदाबाद !
इंकलाब ज़िंदाबाद !.


इसे कहते हैं मोदी का जादू.....

इसे कहते हैं मोदी का जादू.....

लम्बे अरसे से मोदी जी के खिलाफ लिखती आ रही वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने भी मोदी जी का लोहा मान लिया है।
पेशे से पत्रकार तवलीन मुस्लिम समुदाय से हैं
जिन्होंने पाकिस्तान के नेता सलमान तासीर से निकाह किया था।

अमर उजाला में आज छपे लेख में उन्होंने लिखा है कि:

"लोग क्या चाहते है वो अब दिखने लगा है। पत्रकार होने के नाते मैं जयपुर गयी लेकिन वहां जो नजारा देखा उसे झुठला नहीं सकती। अगर अपनी आँखों से ना देखा होता तो विश्वास ना होता। जहाँ तक नजर जाती बस लोग ही लोग थे। बहुत से लोग तो सुबह से ही तपती धुप में बैठकर मोदी का इंतजार कर रहे थे। कुछ रस्ते में ही रह गए। कड़ी मशक्कत करने के बाद जब मैं अमरुद वाले बाग़ पहुंची तो वहां कि भीड़ सडको से भी कई गुना ज्यादा थी। मुझे पाँव रखने के लिए भी जगह नहीं मिल रही थी। हर तरफ से मोदी मोदी की आवाजे सुनाई पड़ रही थी जिससे साफ पता चलता था कि लोग सिर्फ मोदी को सुनने आये हैं।

मैंने कई सभाए देखी हैं पर इतनी भारी संख्या में लोग पहले कभी नहीं देखे। दिल्ली में बैठे लोग जो ये कह रहे थे कि मुस्लिम लोगो को जबरदस्ती लाया गया था वो आकर यहाँ देखते। उनकी भी आंखे आश्चर्य से फटी की फटी रह जाती।

मुझे याद है जब जनता पार्टी की सभाओ में लोगो की भीड़ उमड़ने लगी थी और लोग इंद्रा गाँधी हटाओ के नारे लगा रहे थे तब इंदिरा गाँधी इतनी डर गयी थी की उन्होंने दूरदर्शन पर बोबी फिल्म लगवा दी ताकि लोग घरो से ना निकले लेकिन नतीजा उल्टा हुआ।

ठीक ऐसा ही उस दिन मेरे साथ हुआ । अम्रूद्वाले बाग़ तक पहुँचने में 6 घंटे से ज्यादा समय लगा। एक बार तो लगा की लौट जाऊं पर लोगो के सैलाब को उधर जाते देख मैं भी उनके साथ हो ली। दूर दूर से लोग आ रहे थे क्या बूढ़े और क्या बच्चे...नौजवान तो इतने थे कि पूरे भारत के युवा यहीं आ गए हैं। भीड़ को वहां जाने से रोकने के लिए प्रशासन ने बहुत प्रयास किये। यातायात को अवरुद्ध कराया गया। यहाँ तक की जगह जगह बिजली भी बंद कर दी गयी। राजस्थान सरकार की ऐसी व्याकुलता देखकर मुझे इंद्रा गाँधी की वो दशा याद आ गयी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में मोदी नाम की आंधी चल चुकी है और इस आंधी का असर इतना तेज है की विरोधी अपना तम्बू भी नहीं संभाल पा रहे।


गरूत्वाकर्षण की खोज...

गरूत्वाकर्षण की खोज {Bhaskaracharya's Gravity}
--------------------------------------------------------------------
गरूत्वाकर्षण की खोज का श्रेय न्यूटन (25 दिसम्बर 1642 – 20 मार्च 1726) को दिया जाता है। माना जाता है की सन 1666 में गरूत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने की | तो क्या गरूत्वाकर्षण जैसी मामूली चीज़ की खोज मात्र 350 साल पहले ही हुई है? ...नहीं |

हम सभी विद्यालयों में पढ़ते हैं की न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी परन्तु मह्रिषी भाष्कराचार्य ने
न्यूटन से लगभग 500 वर्ष पूर्व ही पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक पूरा ग्रन्थ रच डाला था |
भास्कराचार्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। इनका जन्म 1114 ई0 में हुआ था। भास्कराचार्य उज्जैन में स्थित वेधशाला के प्रमुख थे। यह वेधशाला प्राचीन भारत में गणित और खगोल शास्त्र का अग्रणी केंद्र था। जब इन्होंने "सिद्धान्त शिरोमणि" नामक ग्रन्थ लिखा तब वें मात्र 36 वर्ष के थे। "सिद्धान्त शिरोमणि" एक विशाल ग्रन्थ है (पढने हेतु यहाँ क्लिक करें ) जिसके चार भाग हैं (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) गोलाध्याय और (4) ग्रह गणिताध्याय।

लीलावती भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। अपनी पुत्री के नाम पर ही उन्होंने पुस्तक का नाम लीलावती रखा। यह पुस्तक पिता-पुत्री संवाद के रूप में लिखी गयी है। लीलावती में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है।


भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।

"मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो,विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।।"
सिद्धांतशिरोमणि गोलाध्याय - भुवनकोश
आगे कहते हैं-
"आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं,गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
आकृष्यते तत्पततीव भाति,समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।।"
- सिद्धांतशिरोमणि गोलाध्याय - भुवनकोश
अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं। ऐसे ही अगर यह कहा जाय की विज्ञान के सारे आधारभूत अविष्कार भारत भूमि पर हमारे विशेषज्ञ ऋषि मुनियों द्वारा हुए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ! सबके प्रमाण भी उपलब्ध हैं !

तथा इसके अतिरिक एक और बात में जोड़ना चाहूँगा की निश्चित रूप से गरूत्वाकर्षण की खोज हजारों वर्षों पूर्व ही की जा चुकी थी जैसा की हमने इस ब्लॉग में महर्षि भारद्वाज रचित 'विमान शास्त्र ' के बारे में बताया था । विमान शास्त्र की रचना करने वाले वैज्ञानिक को गरूत्वाकर्षण के सिद्धांत के बारे में पता न हो ये हो ही नही सकता क्योंकि किसी भी वस्तु को उड़ाने के लिए पृथ्वी की गरूत्वाकर्षण शक्ति का विरोध करना अनिवार्य है। जब तक कोई व्यक्ति गरूत्वाकर्षण को पूरी तरह नही जान ले उसके लिए विमान शास्त्र जैसे ग्रन्थ का निर्माण करना संभव ही नही | अतएव गरूत्वाकर्षण की खोज कई हजारों वर्षो पूर्व ही की जा चुकी थी |



भटकल भारत को लहूलुहान करने की योजना को अंजाम देने देश के विभिन्न राज्यों में घूमा करता था

भटकल भारत को लहूलुहान करने की योजना को अंजाम देने देश के विभिन्न राज्यों में घूमा करता था

पड़ोसी मुल्क नेपाल के पोखरा में रह रहे यासीन भटकल के किराए के मकान पर जब इंटेलिजेंस ब्यूरो, बिहार पुलिस और नेपाल के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम ने 28 अगस्त को धावा बोला तो आतंक के इस सरगना के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. उसने जोर देकर कहा, ''मैं इंजीनियर हूं. आप गलत आदमी को पकड़ रहे हैं.'' सीधे 200 से ज्यादा भारतीयों की हत्या के लिए जिम्मेदार यासीन ने कानून से लगातार पांच साल तक छुपते रहने के लिए हमेशा यही तिकड़म अपनाई थी.

आंखों पर पट्टी बांधकर यासीन को उठा लिया गया और एक अनजान जगह पर ले जाकर उससे पूछताछ की गई. उसने लगातार अपनी पहचान छुपाई और खुद को पाकिस्तानी पासपोर्ट धारक बताया. इस गतिरोध का अंत तब हुआ, जब पुलिसवालों ने उसकी नाक तोड़ दी. फिर उसने सारी बातें कबूल लीं.

फिलहाल नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) अपनी सबसे बड़ी पकड़ से दिल्ली में जवाब-तलब कर रही है और उन्हें उसकी अहमियत समझ में आने लगी है. एक गुप्तचर अधिकारी बताते हैं, ''अब तक हमने सिर्फ प्यादों को पकड़ा था. यासीन का मामला अलग है. वह इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) के संस्थापक सदस्यों में से एक है. वह आइएम का कमांडर है, जो दूसरे आतंकियों को निर्देशित करता था. '' यासीन में काफी आत्मविश्वास था और उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था.

पिछले पांच साल के दौरान उसकी जो सनक हमने देखी, उसमें एक खास रुझान रहा: चाहे वे पुणे की जर्मन बेकरी में कोल्ड कॉफी की चुस्कियां लेते पर्यटक रहे हों, दक्षिण मुंबई में भीड़भाड़ के वक्त छोटे व्यापारी या फिर हैदराबाद के बाहरी इलाके दिलसुखनगर में डोसा खाने जाते छात्र, सब उसके धमाकों का शिकार बने. जो मासूम बच्चे उसके बम धमाकों में मारे गए, उनके बारे में पूछे जाने पर उसने कहा, ''तो क्या हुआ? लोग तो हर वक्त मरते ही रहते हैं. मेरा काम भारत सरकार को एक संदेश भेजना था. मैं चैन से सोया हूं—अपने पहले ऑपरेशन से लेकर आखिरी तक मुझे कभी भी कोई बुरा सपना नहीं आया. ''

यासीन ने अपने किए के बचाव में ग्रंथों का भी हवाला दिया. उसने भगवद् गीता का उदाहरण देकर कहा कि वह किसी की जान नहीं ले रहा था, बल्कि आत्माओं को सद्गति प्राप्त करवा रहा था. उससे सवाल पूछने वाले एक बड़े आइपीएस अधिकारी उसे माओवादियों जैसा निर्दयी बताते हैं, जो लोगों की हत्या करके भी कठोर बने रहते हैं. वे कहते हैं, ''अपने करियर में मैंने इससे ज्यादा कठोर आतंकी नहीं देखा. ''

यासीन को पकडऩे के बाद उसकी मदद से गुप्तचर अधिकारी दूसरे बम हमलों को भी टालने में कामयाब हो रहे हैं. मसलन उसने अधिकारियों को बताया था कि दो आतंकी—बिहार के समस्तीपुर का तहसीम अख्तर उर्फ मोनू और पाकिस्तानी आतंकी वकास भारत में अहम ठिकानों को निशाना बनाने के लिए घुस चुके हैं. उससे बातचीत करके अफसरों को कराची से चलने वाले आइएम की कार्यप्रणाली के बारे में भी जानकारी मिल रही है. यासीन के मुताबिक दुनियाभर में मौजूद आइएम के समर्थक उसके 'कम ताकत के धमाके करने' से नाखुश हैं. इसके चलते आइएम को लोकसभा चुनाव आने तक अहम ठिकानों पर धमाके करने के लिए नई टीमें गठित करने को मजबूर होना पड़ा है. चुनावों के समय नेताओं पर सबसे ज्यादा खतरा होता है. उसने बताया कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे बड़ा निशाना थे क्योंकि उन तक पहुंचने का मतलब था कि दुनियाभर के समर्थकों से पैसे की आमद बढ़ जाती. लश्करे तैयबा की तरह आइएम को भी 26/11 के हमले के बाद खूब पैसा मिला था. यासीन की गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले ही कराची स्थित रियाज भटकल (रिश्तेदार नहीं) ने उसे हवाला से दो लाख रु. भिजवाए थे.

आइएम के भीतर असंतोष और दरार संबंधी यासीन के दावों की जांच अब भी एजेंसियों को करनी है, लेकिन एक बात गौर करने वाली है कि आइएम के भीतर एक धड़ा असंतुष्ट और कट्टर है, जिसने अपने संस्थापकों इकबाल और रियाज भटकल के आदेश मानने बंद कर दिए हैं और सीधे अपने पाकिस्तानी आकाओं के संपर्क में रहता है. यासीन से पूछताछ में दूसरे आतंकी मामले भी हल होने की संभावना बन रही है, जैसे जुलाई, 2006 में मुंबई की ट्रेन में हुए धमाके, जिसमें 209 लोग मारे गए थे. हो सकता है कि पूछताछ में सीमा पार से आइएम को निर्देशित कर रहे तत्वों के नाम भी सामने आ जाएं.

हेडली ने बताई पाकिस्तान की भूमिका
सबसे पहले डेविड कोलमैन हेडली ने भारत के शहरों में बम धमाकों का विवरण दिया था. हेडली 26/11 हमले में शामिल था. अमेरिका की एक जेल में एनआइए के चार अफसरों से बातचीत में 2010 में उसने 'कराची प्रोजेक्ट' पर रोशनी डाली थी. भारतीय एजेंसियों को 2002 से चल रही एक साजिश का सिर्फ अंदाजा भर था. सारा अभियान पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर से शुरू हुआ, जहां मुस्लिम नौजवानों को बम बनाने में प्रशिक्षित किया गया ताकि वे भारतीय शहरों में हल्की तीव्रता वाले आतंकी हमले कर सकें. जैसा गुप्तचर अधिकारी बताते हैं कि इन हमलों के दो मकसद थे. पहला मकसद सिलसिलेवार धमाकों से भारतीय अर्थव्यवस्था पर हमला करना था. साथ ही इस तरह हमला करना कि उसमें पाकिस्तान की संलिप्तता न जाहिर हो.

हेडली ने पाकिस्तानी फौज के एक रिटायर्ड अधिकारी 45 वर्षीय मेजर अब्दुर्रहमान हाशिम का नाम लिया था, जिसने इस प्रोजेक्ट को आइएसआइ के करीब लाने का काम किया. यह मेजर एनआइए की मोस्ट वांटेड सूची में 'गोल चेहरे वाला, लहीम-शहीम' बताया गया है, जो 'पाशा' तखल्लुस लगाता है और भारत के 50 मोस्ट वांटेड भगोड़ों की सूची में जमात-उद-दावा (जेयूडी) के हाफिज सईद और 26/11 हमले में शामिल रहे साजिद मीर के बाद तीसरे नंबर पर आता है. इसने 2002 में पाकिस्तानी फौज छोड़ी थी, जिसके बाद लश्कर के लिए फिदायीन को प्रशिक्षण देने का काम किया. यह काम आइएसआइ के एक अफसर की निगरानी में चलता रहा, जिसे हेडली ने 'कर्नल शाह' के तौर पर पहचाना है.

अब्दुर्रहमान 2008 में लश्कर से अलग हो गया और स्वतंत्र रूप से कराची का 'सेट अप' चलाने लगा. रहमान का दावा था कि वह ओसामा बिन लादेन का करीबी है. पाकिस्तानी फौज में रहते हुए उसने 2001 में तोरा बोरा से भाग रहे अल कायदा के लड़ाकों पर हमला करने से इनकार कर दिया था. रहमान ने हेडली को बताया था कि 2006 में मुंबई की ट्रेन में हुए धमाके उसके 'लड़कों' ने ही किए थे और बिन लादेन ने उसके संगठन को जुंद-उल-फिदा (फिदायीनों की फौज) नाम दिया है. रहमान ने हेडली को बताया था कि उसके लड़के भारतीय नौजवान थे.

भटकल का लड़का
इन्हीं में से एक लड़का कर्नाटक के मंगलूर से उत्तर में 140 किलोमीटर दूर स्थित कस्बे भटकल से आया था. यहां की मकदूम कॉलोनी में भटकल के घर की दीवार के उस पार से एक नाराज महिला की आवाज आती है, ''जाओ, बात नहीं करनी है. '' यह प्रतिक्रिया चौंकाती नहीं. जब कभी कोई ऐसा आतंकी हमला होता है, जिसमें आइएम का संदिग्ध हाथ बताया जाता है, पत्रकार और पुलिसवाले इसी घर में आते हैं. यही वह घर है, जहां अहमद सिद्दीबापा उर्फ यासीन भटकल का परिवार रहता है. जिस औरत की आवाज हमने सुनी, वह यासीन की मां रेहाना है. उनके देवर याकूब सिद्दीबापा बताते हैं कि वह दिनभर रोती रहती हैं. याकूब मकान के संगमरमर वाले आंगन में एक कुर्सी पर बैठे हैं. वे कहते हैं, ''एक जानने वाले ने मुझे फोन करके अहमद की गिरफ्तारी की खबर दी. देखिए, मैं भटकल में कितना मशहूर हो चुका हूं. ''

अधिकतर लोगों को याद है कि अहमद ''एक संकोची, अच्छा दिखने वाला और खुदा का खौफ रखने वाला लड़का था, जो किसी से आंख नहीं मिलाता था. '' भटकल के एक समाजकर्मी निसार अहमद कहते हैं, ''मैंने अहमद को या जैसा आप मीडिया वाले कहते हैं, यासीन को कभी आक्रामक नहीं देखा. वह देशभक्त था. हर राष्ट्रीय अवकाश पर झंडा फहराता था. ''

आज भटकलियों के बीच यासीन भटकल का नाम असहज करने वाली प्रतिक्रियाओं को जन्म देता है. अहमद के साथ पढ़े एक शख्स हमसे अनुरोध करते हैं कि उनकी पहचान न जाहिर की जाए वरना खाड़ी देश जाने की उनकी योजना मुश्किल में पड़ जाएगी. वे बताते हैं, ''अहमद जब 10वीं में था, तब मैंने उसे जाना. वह बहुत शांत था और अपने से मतलब रखता था. '' लेकिन जैसे ही यासीन की आतंकी गतिविधियां सुर्खियों में आईं, उसके इस दोस्त को तीन बार मुंबई एटीएस ने पूछताछ के लिए उठाया और एक बार बंगलुरू पुलिस भी उसे उठाकर ले गई ताकि वह अलग-अलग हुलिए में यासीन की पहचान कर सके.

गिरफ्तारी की खबर आने के बाद उसे जानने वाले सदमे में हैं कि वे कैसे उसके मासूम चेहरे की असलियत नहीं जान पाए. भटकल के नौनिहाल पब्लिक स्कूल में उसकी टीचर रही चुकीं जरीना कोला कहती हैं, ''वह अच्छे व्यवहार वाला लड़का था, जो हमारे स्कूल में तीसरी से सातवीं तक पढ़ा. मैंने उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा. वह हमेशा क्रिकेट मैचों के दौरान भारत का समर्थन करता था. मुझे तो यकीन नहीं हो रहा. ''

याकूब बताते हैं, ''अहमद जब हाइस्कूल में था तो उसने शुरुआती दो परचे दिए, लेकिन तीसरा परचा जुमे को था, इसलिए उसने मस्जिद में नमाज में वक्त बिता दिया. यह उसकी पढ़ाई का अंत था. '' 2004 में वह जरार के पास दुबई गया, जो वहां कपड़े का धंधा करता था. जरार कारोबार में उसकी मदद करने को तैयार नहीं हुआ तो 2007 में अहमद ने गुस्से में दुबई छोड़ दिया. परिवार का दावा है कि तभी उन्होंने अंतिम बार उसे देखा था.

नफरत का भाईचारा
इस शहर में किसी को पता नहीं है कि आखिर अहमद कब यासीन बन गया, लेकिन उसने यह नाम जब चुना तभी उसकी राह बदल चुकी थी. गुप्तचर अफसरों का दावा है कि दुबई में उसकी मुलाकात रियाज भटकल से हुई, लेकिन 2007 में शायद भारत में वह इकबाल भटकल के प्रभाव में आया, जिसने उसे मुंबई और गुजरात दंगों के वीडियो दिखाकर अपने पाले में किया. माना जाता है कि यहां से वह कराची गया, जो भारत से भागे हुए लोगों की सबसे बड़ी पनाहगाह है.

वहां भटकल के ही रहने वाले शाहबंदरी बंधु इकबाल और रियाज भटकल समेत कोलकाता का गैंगस्टर आमिर रजा खान भी था, जो वहां से भागकर अपने गैंगस्टर भाई के नाम पर आसिफ रजा कमांडो फोर्स (एआरसीएफ) नाम का आतंकी संगठन चलाता था. आसिफ को जिसे गुजरात पुलिस ने 2002 में मार गिराया था. आइएसआइ ने 2007 में प्रतिबंधित सिमी, एआरसीएफ और भटकल भाइयों के संगठन को आइएम में मिला दिया और इस तरह देश में हमला करने वाला एक घरेलू आतंकी नेटवर्क तैयार हुआ.

अब तक इस प्रोजेक्ट का थोड़ा खाका ही सामने आ सका है. लेकिन यह तय है कि यासीन उन भारतीय नौजवानों की शुरुआती खेप का सदस्य रहा, जो ईरान की सीमा के करीब बलूचिस्तान के सुदूर इलाकों में आइएसआइ के प्रशिक्षण शिविरों में तैयार किए गए थे. इन्हें स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अमोनियम नाइट्रेट और टीएनटी जैसे विस्फोटकों से आइईडी (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) बनाना सिखाया गया क्योंकि आरडीएक्स से हमला सरकार की संलिप्तता की ओर इशारा कर सकता था. इन्हें आइईडी को बनाकर कम विस्फोटक, लेकिन ज्यादा छर्रों के साथ लगाना सिखाया गया ताकि ज्यादा नुकसान हो सके. इन्हें कम सुरक्षा वाले ठिकाने बताए गए जैसे सार्वजनिक परिवहन, बाजार, सिनेमा हॉल और पर्यटन स्थल ताकि विस्फोट का असर ज्यादा हो. इन बमों में आधुनिक संचालन प्रणाली लगी थी. इन्हें दूर से और सेलफोन से भी फोड़ा जा सकता था.

अंतरराज्यीय आतंकी
एक गुप्तचर अधिकारी बताते हैं कि कैसे सिर्फ एक मामूली गलती से आतंकियों को पकड़ लिया जाता है. दिल्ली, मुंबई और जयपुर को निशाना बनाने वाली आइएम के चार आतंकियों की एक टीम को 18 सितंबर, 2008 को दिल्ली के बटला हाउस में गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उनके मोबाइल सिम कार्ड की पहचान कर ली गई थी. यासीन 2007 में किसी वक्त नेपाल के रास्ते भारत आया था, लेकिन उसे पकड़ पाना मुश्किल था. उसने भले ही स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी, लेकिन उसे अच्छी कन्नड़, अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी, फारसी और बंगाली आती थी इसलिए वह एक शिक्षित व्यक्ति की तरह बच निकलता था.

यासीन गुप्तचर गतिविधियों का महारथी था. वह अपने पाकिस्तानी आकाओं से संपर्क के लिए ईमेल का इस्तेमाल नहीं करता था. वह बार-बार अपना पता बदलता और कुछ सेकेंड की कॉल के लिए ही अपना मोबाइल इस्तेमाल करता. वह कभी भी एक सिम कार्ड और एक मोबाइल का दो बार इस्तेमाल नहीं करता था. जिन 11 सिलसिलेवार बम धमाकों को उसने कबूला है, हरेक में वह फर्जी पहचान के साथ महीनों पहले से रह रहा होता, मौके का मुआयना करता और अंत में विस्फोटक सामग्री खरीदकर आइईडी बनाता था.

दिसंबर, 2009 में कोलकाता में चोरी के एक मामूली केस में उसकी पहचान कुछ देर के लिए हो गई थी, जिसमें दो और संदिग्ध थे. लेकिन बांग्ला भाषा पर अपनी पकड़ के चलते उसने तुरंत खुद को बाहरी इलाके में रहने वाले बुल्ला मलिक के रूप में पेश कर दिया और बच गया. इस मामले में उसे दो महीने की मामूली जेल हुई, जिसके बाद एक सहयोगी ने उसकी जमानत करवाई.

यह अब तक नहीं पता है कि कोलकाता में यासीन कहां रहता था. पुलिस को दिया उसका पता फर्जी निकला. यह साफ है कि बिहार के करीब होने और बांग्लादेश तथा नेपाल के साथ खुली सीमा होने का फायदा वह यहां रहकर विस्फोटक सामग्री मंगवाने के लिए उठाता था. यह बात कोलकाता से जमानत पर छूटने के कुछ दिनों बाद ही उसने साबित कर दी थी, जब पुणे की जर्मन बेकरी में सीसीटीवी कैमरे ने एक दाढ़ी वाले नौजवान को बेसबॉल हैट और पीठ पर बैग लादे हुए कैद किया था. बाहर निकलने पर इस शख्स ने अपना बैग वहीं छोड़ दिया. कुछ देर बाद उस बैग में रखा बम फटा और 17 लोग मारे गए और 60 जख्मी हुए.

कुछ महीनों बाद 2011 में यासीन मुंबई में डॉ. इमरान नाम से एक विनम्र यूनानी डॉक्टर बनकर आया, जिसने 5, हबीब बिल्डिंग, मुंबई सेंट्रल में एक कमरा किराए पर लिया. इमरान के साथ वकास भी था. 13 जुलाई, 2011 को दक्षिण मुंबई में तीन ठिकानों पर बम फटे, जिसमें 27 लोग मारे गए और 100 जख्मी हुए. इसमें एक निशाना हबीब बिल्डिंग से दो किलोमीटर दूर ऑपेरा हाउस में भीड़भाड़ वाले पंचरत्न डायमंड सर्राफा बाजार के बाहर की सड़क भी थी. इस दौरान यह मृदुभाषी डॉक्टर, जो सेंट्रल मुंबई में अरुण गवली की व्यायामशाला में कसरत करता था, गायब हो चुका था. कमरा खाली था. वहां कोई फर्नीचर नहीं था. फर्श पर सिर्फ अखबार बिखरे थे.

फिर 2009 में यासीन इमरान बनकर दिल्ली पहुंचा. राजधानी के शाहीन बाग इलाके में उसने इरशाद खान नाम के एक शख्स के साथ मिलकर बम बनाने का कारखाना लगाया. इरशाद ने अपनी 26 साल की बेटी जाहिदा को इस बात के लिए राजी किया कि इमरान लखनऊ का एक मैकेनिकल इंजीनियर है और दोनों की शादी करा दी. यहां वह एक पांच वक्त नमाजी की तरह रह रहा था और फर्श पर सोता था. नवंबर, 2011 में जब पुलिस वहां पहुंची तो इमरान नदारद था. इस दौरान उसने सिर्फ एक रियायत यह दी कि पब्लिक बूथ से जाहिदा को फोन करके इस बात का भरोसा दिया कि वह घर से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर है.

इस साल मई में नेपाल स्थित आइबी के मुखबिरों ने एजेंसी को बताया कि नेपाल के पोखरा में यासीन से मिलता-जुलता एक शख्स देखा गया है. इसके बाद से आइबी ने उसे अपनी निगरानी में ले लिया. वह लाल बाइक चलाता था, उसके पास दो लैपटॉप, चार सेलफोन थे और नकदी की कोई कमी नहीं थी. उसके पाकिस्तानी आकाओं के बार-बार कहने के बावजूद यासीन ने अपनी दाढ़ी नहीं कटवाई थी. यही एजेंसी के लिए सकारात्मक रहा. बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के पुलिस अधीक्षक विनय कुमार नेपाल में एक सप्ताह से ज्यादा समय तक उसका पीछा करते रहे. गया जिले के एसएसपी के तौर पर कुमार ने जर्मन बेकरी धमाके में गिरफ्तार किए गए आइएम के चार आतंकियों से पूछताछ की थी. इस साल ईद से ठीक पहले 9 अगस्त को यासीन ने एक और गलती कर दी.

उसने नेपाल के दो मोबाइल नंबरों से अपनी पत्नी जाहिदा को तीन बार कॉल किया और इसके तुरंत बाद 1000 डॉलर उसे भेजे. इस ऑपरेशन पर आइबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम की करीबी निगाह थी. आखिरकार आइबी और बिहार पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में उसे धर लिया गया. अजीब बात यह थी कि बिहार पुलिस को यासीन को अपनी हिरासत में लेने की कोई उत्सुकता नहीं थी. उनका इशारा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिंता है कि यासीन की गिरफ्तारी उनके मुस्लिम वोट बैंक पर असर डाल सकती है.

यासीन की गिरफ्तारी से आतंक के खिलाफ जंग खत्म नहीं हुई है. अब भी आइएम के भगोड़े जैसे बम विशेषज्ञ अब्दुल सुभान कुरैशी या बंगलुरू के चिन्नास्वामी स्टेडियम में 2010 में हुए धमाके का आरोपी मोनू यासीन की जगह ले सकते हैं. मेजर अब्दुर्रहमान के कराची प्रोजेक्ट के सेटअप में दिल्ली, मुंबई और पुणे के बारे में दर्जनों रेकी वीडियो और जीपीएस से मिली जानकारियां मौजूद हैं, जिन्हें डेविड हेडली ने मुहैया कराया है. इनमें दिल्ली का नेशनल डिफेंस कॉलेज है, जहां बड़े नौकरशाह और सैन्यकर्मी प्रशिक्षित किए जाते हैं. पुणे के ओशो कम्यून समेत प्रधानमंत्री आवास 7, रेसकोर्स भी इसमें शामिल है.

हालांकि अब तक आइएम के पास यासीन के मुकाबले का कोई सदस्य नहीं है, जो इन कामों को अंजाम दे सके. उसकी पकड़ से भारत को तत्काल तो कुछ राहत मिलती दिख रही है. एक गुप्तचर का कहना है, ''आइएसआइ को अगला धमाका करने में छह माह से एक साल तो लग ही जाएगा. '' इतनी लंबी लड़ाई में यह कुछ पल की राहत तो कही ही जा सकती है.


श्री कृष्ण के भांजे अभिमन्यु की कथा की विज्ञान ने की पुष्टि ......

श्री कृष्ण के भांजे अभिमन्यु की कथा की विज्ञान ने की पुष्टि ......

महाभारत आदि को मिथ्या मानने वालो के मुँह पर एक और थाप |
महाभारत के इस प्रसंग को सभी जानते है की एक समय जब श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा गर्भ धारण किये हुए थी तब श्री कृष्ण उन्हें चक्रव्युह का तोड़ बता रहे थे असल में श्री कृष्ण तो ठहरे सर्वज्ञ, वे बता तो उसी शिशु ( अर्जुन पुत्र :- अभिमन्यु ) को रहे थे जो सुभद्रा के गर्भ में था क्योंकि वे जानते थे की इस शिशु को आगे जा कर इस रणनीति की परम आवश्यकता पड़ेगी । परन्तु नियति कुछ और ही थी । चक्रव्युह का वर्णन सुनते सुनते सुभद्रा जी की आंख लग गई और वर्णन केवल चक्रव्युह में घुसने (तोड़ने) तक ही हो पाया था निकलने का सुनने से पूर्व ही सुभद्रा जी सो गई । और इसी कारण श्री अभिमन्यु चक्रव्युह में घिर कर ही वीरगति को प्राप्त हुए थे |

इस प्रसंग को श्री व्यास जी ने इस प्रकार लिखा है :

श्री कृष्णेन सुभद्राये गर्भवत्येनिरुपितम
चक्रव्यूह प्रवेशस्य रहस्यम चातुदम्भितत
अभिमन्यु स्तिथो गर्भे द्विवेद्यनानयुतो श्रुणो
रहस्यम चक्रव्यूहस्य स.म्पूर्णम असत्यातवा
यदार्जुनो गतोदुरम योदूं सम्शप्तदैसः
अभिमन्यु.म बिनानान्यः समर्द्योव्यूहभेदने
भेदितेचक्रव्यूहेपि अतएव विबिणेवा
पार्थपुत्रस्य एकाकी कौरवे निगुर्णेवतः

लोग इस पौराणिक कथा को कल्पना पर आधारित मानते हैं | ये कल्पना नही हमारा इतिहास है और अक्षर अक्षर सत्य है |
हालही में हुए एक प्रयोग (2 जनवरी 2013 को) में वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है के गर्भ केशिशुओं भी भाषण की ध्वनि सीखता है | तथा वैज्ञानिकों ने महाभारत के इस प्रसंग पर भी मुहर लगाई |

नवीनतम वैज्ञानिक सबूत से पता चला है कि बच्चे उनके गर्भ के समय से ही सुनते है और भाषा कौशल सीखते है। फ्रांसीसी वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्भ के बच्चे अपने जन्म के 3 महीने पहले ही भाषण ध्वनियों में अंतर करना सीख जाता है। (vedicbharat.com) अमेरिका में Pacific Lutheran University के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में पता लगाया है कि बच्चे गर्भाशय में भी मातृभाषा के विशिष्ट ध्वनियों चुन सकते हैं। अध्ययन ने इस अनुमान को नकार दिया है कि बच्चे पैदा होने के बाद ही भाषा सीखते है। “ यह पहला अध्ययन है जिससे पता चलता है की हम पैदा होने से पहले ही अपनी मातृभाषा की भाषण ध्वनियों को सीखते हैं !

क्रिस्टीन मुन, जो अध्ययन का नेतृत्व कर रहे उन्होंने कहा:- ज्यादातर वैज्ञानिक अब आश्वस्त है कि अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु ने युद्ध के चक्रव्यूह गठन को भेदने की कला माँ सुभद्रा के गर्भ में सीखी।

जिन्हें केवल गोरी चमड़ी वालो का कहा सत्य लगता है वो यहाँ अपनी खुजली मिटायें :-

http://www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-2256312/Tale-Abhimanyu-true-scientists-babies-pick-language-skills-womb.html
http://www.washington.edu/news/2013/01/02/while-in-womb-babies-begin-learning-language-from-their-mothers/
http://www.abc.net.au/news/2013-02-26/unborn-babies-learn-sounds-of-speech3a-study/4541788
http://ilabs.uw.edu/
http://www.shrinews.com/DetailNews.aspx?NID=8237


दुनिया का सबसे पहला हवाई जहाज

दुनिया का सबसे पहला हवाई जहाज किसने बनाया था .......अब आप कहेंगे Wright Brothers ने ......नहीं इन दोनों के प्लेन बनाने के 8 साल पहले इसे ShivKar Bapuji TalPade ने बनाया था Maharashtra में और उड़ाया भी था ...

और अधिक जानकारी के लिए इस Video को देखो ..

Link : ==> http://m.youtube.com/watch?v=AA6Mdy2dEQw&client=mv-google&gl=IN&hl=en&guid



Sunday, September 15, 2013

विज्ञापन हमें क्या सिखाते हैं......... ??


विज्ञापन हमें क्या सिखाते हैं......... ??

1) घोटालो से परेशान ना हो Tata की चाय पीयो देश बदल जाएगा l
2) पानी की जगह कोका कोला और पेप्सी पीयें और प्यास बुझाओ
3) लाइफबॉय और डेटोल 99.9% कीटाणु मारते है पर 0.1 % पुनः प्रजनन के लिए छोड़ देते हैं l
4) महिलाओं को बचाने और बटन खुले होने की चेतावनी देने का ठेका अक्षय कुमार
ने लिया है l
5) अगर आप स्प्राइट पीते हैं तो लड़की पटाना आपके बाये हाँथ का खेल है
6) सलमान खान के अनुसार महीने भर का व्हील डिटर्जन ले आओ और कई
किलो सोने के मालिक बन जाओ .आपको नौकरी करने की कोई जरुरत
नहीं .!
7) सैफ अली खान और करीना ने शादी एक दुसरे के सर का डैंड्रफ देख कर की है l
यदि किसी के टूथपेस्ट में नमक है तो यह पूछने के लिए आप किसी के भी घर का बाथरूम तोड़ सकते हैं l
9) सैमसंग S3 फोन के अलावा बाकी सभी फोन बंदरों के लिए बने हैं l
10) माउन्टेन ड्यू पीकर पहाड़ से कूद जाइये, कुछ नहीं होगा l
11) संधि सुधा तेल के बिना सभी बेकार बैठेअभिनेता भूखे मर जायेंगे l
12) कैडबरी डेरी मिल्क सिल्क चोकलेट खाएं कम और मुंह पर ज्यादा लगायें l
13) हैप्पीडेंट चबाइए और बिजली का कनेक्शन कटवा लीजिये l
14) आपके इंशोरेंस एजेंट्स को अपने पापा से ज्यादा आपकीफ़िक्र रहती हैं l
15) फलमंडी से ज्यादा फल आपके शैम्पू में होते हैंl
16) अपने घर का संडास सदा साफ़ रखें अन्यथा एक गोरा सा लड़का हार्पिक और कैमरा लेकर आपके संडास की सफाई का सीधा प्रसारण करने लगेगा l
17) अगर आपने घर में एशियन पेंट्स किया है तो आप दुनिया के
सबसे होंशियार इन्सान हैं l
18) अगर आपने लक्स कोजी बिग शॉट नहीं पहनी तो आपको मर्द कहलाने का कोई हक़
नहीं l
19) मेरा पापा रिवाईटल खाता था तुम खाओ ना खाओ अपने पापा को
जरुर खिलाओ l
20)अगर तुम्हारा बेटा बोर्नवीटा नहीं पीता तो वो मंदबुद्धि वाला होगा बोर्नवीटा पीओ

................ये केवल कुछ ही उदाहरण हैं.......!!


अंग्रेजों के लगाये 23 तरह के टैक्स कानून लगाकर इस देश के नागरिकों को जमकर लूटा, लहभग 190 वर्षों तक...

औरंगजेब ने जजिया कर लगाया था जो साल मे
एक हि बार देना पड़ता था, आमदनी पर उसने
भी कोई कर नही लगाया था | लेकिन अंग्रेजों ने
भारत की लोगोंकी आमदनी पर कर
लगाया वो भी 97%, माने 100 रूपए अगर
किसी की आमदनी हो तो 97 रूपए
अंग्रेजों को देना पड़ता था सिर्फ 3 रूपए उसके
पास बचता था | ऐसा व्यवस्था अंग्रेजों ने
बनाया था जिससे सारा पैसा भारतीय से लूट
लेना ताकि भारतीय के हात मे कुछ न बचे,
ताकि वे क्रांतिकारियों को दान न दे सके, इसके
लिए इनकम टैक्स का कानून इस देश मे
आया था |
बड़ी दुःख बात यह है के अंग्रेजों ने जो लूट
का कानून बनाया था वो आज़ादी के 65 साल बाद
भी चल रहा है, Indian Income Tax के
नाम से हि चल रहा है, और आज
भी भारतवासियों से धन लूटा जा रहा है | बस
अंतर इतना है पहले गोर अंग्रेजों ने लूटा था और
उस धन को लन्दन मे जमा किया था, अब काले
अंग्रेज उस कानून के आधार पर धन लूट रहे है और
सुईजरलैंड मे ले जाकर उस धन को जमा कर रहें है;
व्यवस्था वोही के वोही चल रही है कानून वोही के
वोही चल रही है |
अंग्रेजों ने Central Excise Act बनाया –
कोई भी भारतवासी किसी वस्तु का उत्पादन करे
तो उसपर 350% excise duty, अंग्रेजों ने
sales tax लगाया, अंग्रेजों ने road tax
लगाया, toll tax अगया, municipal
corporation tax लगाया और ऐसे 23 तरह
के टैक्स कानून लगाकर इस देश के
नागरिकों को जमकर लूटा, लहभग 190 वर्षों तक
|
अब अंग्रेजों ने यह सब कानून बनाये थे लूटने के
लिए, तो आज़ादी के बाद होना ये चाहिए था के ये
सारे कानून ख़तम किये जाये Income Tax
ख़तम किये जाये, Central Excise ख़तम
किये जाये, Road Tax ख़तम किये जाये, Toll
Tax ख़तम किये जाये, Municipal
Corporation Tax ख़तम किये जाये माने,
अंग्रेजों के लगाये हुए 23 तरह के सारे टैक्स
ख़तम किया जाये | लेकिन हमारे काले अंग्रेजों ने
इसका उल्टा किया, अंग्रेजों के जाने के 65 साल
के बाद काले अंग्रेजों ने इस देश पर अब 64 तरह
के टैक्स लगा रखे है, और देश को लूट रहे है,
अंग्रेजों ने भी जितना नही लूटा होगा उससे कई
गुना जादा काले अंग्रेज, भ्रष्टाचारी नेता, और
भ्रष्टाचारी अधिकारी इस देश को लूट रहें है और
इसी लूट के damदम पर 100 लाख करोड़ रूपए
से जादा इन्होने विदेशी बैंकों मे जमा करके
रखा हुआ है |
साभार: फेस बुक, राजीव दीक्षित जी, कुनाल
आर्य व दिनेश राठोर जी



एक ऐसा गुप्त संगठन जो 100 से ज्यादा देशों मे परोक्ष सरकार चला रहा है.......

एक ऐसा गुप्त संगठन जो 100 से ज्यादा देशों मे परोक्ष सरकार चला रहा है.......ये वही अंग्रेज हैं जिन्होंने दुनिया के अधिकाँश देशों को प्रत्यक्ष रूप से अपना गुलाम बनाया था और आज इन्ही देशों मैं झूठी आजादी झूठा लोकतंत्र स्थापित कर गुलामी के अंतहीन साम्राज्य का विस्तार कर रहे हैं.....हर स्थान पर इनका दखल है हर जगह इनके एजेंट्स हैं कांग्रेस इल्लुमिनाती की एजेंट है भारत मे....

यहूदी ही इल्लुमिनाती हैं....आप अंग्रेज समझिये.....तेरह राज घराने थे जिहोने कई देश को गुलाम बनाया था......आज भी नकली आज़ादी देकर इल्लुमिनाती सिस्टम से कंट्रोल करते हैं .... आज उनका नाम कौंसिल आफ 13 है
उसके नीचे कमिटी 300 है......यही ईस्ट इण्डिया कंपनी थी........सबसे पहले इल्लुमिनाती का इतिहास जानिए .........
===========================================
गोड (god)कौन है किसी को मालुम नही पर उसने एक बार अब्राह्म को पास बूला कर कहा की तूझे और तेरी संतानों को पूरी पृथ्वि आशिर्वाद के रूप में देता हुं । तब से अब्राह्म अपने आप को पूरी पृथ्वि का मालिक समझने लगा, और अपने बच्चों को भी बताता रहा ।

अब्राह्म जिस जीवन शैली से रहता था उसे यहुदी धर्म कहा गया । कुछ पिढियों के बाद उस के विशाल परिवार वैचारिक हिस्से में बंट गया ।

ईशा नाम के आदमी ने दावा किया की मैं गोड की पसंद हुं मै कहता हुं ऐसे जीना है और वो ही हमारा धर्म है, और इसाई धर्म की स्थापना कर दी ।

महम्मद नाम का आदमी बोला मै ही खूदा की पसंद हुं, मैं कहुं वो ही धर्म है, और इस्लाम धर्म की स्थापना हो गई ।

ऐसे एक धर्म से तीन तीन शैतानी धर्म पैदा हो गये,

१ यहुदी ( ओरिजिनल, अब्राह्मवाला)

२ इस्लाम

३ इसाई,

और तीनों दावा ठोकने लगे हम लोग ही उपरवाले की पसंद है, हमें ही पृथ्वि भेंट में मिली है, हमे ही उस पर राज करना है ।

पृथ्वि पर अधिकार के लिए इस्लाम और इसाई प्रजा क्रुजेड और जेहाद के नाम पर सदियों तक कटती रही ।

यहुदी प्रजा
======

यहुदी प्रजा जगत की अन्य प्रजा की तरह इन दोनों की शिकार होती रही, साथ में अलग तरिके से मजबूत बनती रही । अपना सारा ध्यान व्यापारमें लगा दिया और आज की तारिख में धन के बल पर उसी प्रजा ने लगभग विश्व भर को अपना गुलाम बना लिया....

ये मालिक ब्रिटन के राज महल से दूर अपना ही एक अलग छोटासा टाउन बना के रहते थे । इस टाउन की नीव इसा की पहली सदी में रोमन व्यवसायीयों ने डाली थी । युद्ध होते रहे, राज परिवार बदलते रहे । हजार साल पहले, सन १०६७ राजा के साथ समझौता किया । इस टाउन के नागरिक राजा के वफादार रहेंगे, राजा को जितने भी धन की जरूरत पडे, ये नागरिक देंगे लेकिन शर्त इतनी की राजा कभी भी उनके काम में कोइ दखल न दे, राजा का कोइ भी कानून इस टाउन को लागू नही होने चाहिए ।

लंडन शहर के बिचो बीच आज भी ६७७ एकर का एक छोटासा ८००० की आबादीवाला स्वतंत्र देश “सिटी ओफ लंडन कोर्पोरेशन” मौजुद है ।

इस सिटी के आदमी इस सिटी से बाहर ब्रिटन की किसी भी संस्था में बडे पद पर पहुँच जाते है लेकिन बाहर का आदमी इस सिटीमें कभी बडे पद पर नियुक्त नही होता । ब्रिटन की पार्लमेंन्टमें मैं भी ये चुन के जाते है लेकिन वहां का कानून इन पर लागु नही होता । इन का राज परिवार से सीधा संबंध है । दिनमें बाहर से दो ढाई लाख आदमी बाहर से काम के लिए आ जाते हैं ।

विश्व की 500 बेंकों के, बडे बडी कंपनियो के हेडक्वाटर यहां पर है ।

1=युनो(uno), अमेरिका का डिस्ट्रिक्ट ओफ कोलंबिया (जो अमरिका के कंट्रोलमें नही है),

2=नाटो की सेना,

3=युरोप के १३ राज घराना और अति धनवान परिवार,

4= कमिटी-३००, इन सब के अधिकारियों की मिटिन्ग, सबके निर्णय इस सिटीमें लिये जाते हैं ।

इनके काम ====

दुनिया के देशों में किसे प्रमुख बनाना चाहिए किसे पद से उतारना है यहां तय होता है । वेटिकन सिटी में किसे पोप बनाना है निर्णय ये लोग लेते हैं ।

सारी दुनिया को कैसे हेंडल करना है वो सारे निर्णय यहां होते है । एक तरिके से पूरी दुनिया पर इस सिटी का राज है । न्यु योर्क का वोलस्टीट इस का ही एक हिस्सा है ।

यहां यहुदी ही रह गये हैं ऐसा नही है अब सारे धनपति आ गये हैं, जिनका स्थापित धर्म के साथ लेना देना नही है । उनका अपना मॅसोनिक धर्म है । सिटी के बीचमें मेसोनिक लोज (पूजा स्थल) है । ल्युसिफर नाम के शैतान की पूजा करते हैं । और अपनी जात को क्रुरतम और निर्दयी बनाने के लिये भयंकर तांत्रिक विधी भी कर लेते हैं और कभी बच्चों की बली चढाने से भी नही चुकते ।
ईस सिटी का मुखिया होता है । इसे लोर्ड ओफ मेयर कहा जाता है ।

कमिटी-३०० (इस्ट इन्डिया कंपनी) दुसरे दरजे के धनपति है, वाया सिटी ओफ लंडन कोर्पोरेशन, ये लोग पूरी दुनिया का फाईनान्स हेन्डल करते है ।

आईएमेफ IMF

वर्ल्ड बेन्क, WORLDBANK

फेड रिजर्व, AMERICI FED RESERV

युरोपिय सेन्ट्रल बेन्क

और दुनिया भरकी बेन्किन्ग सिस्टम का नियंत्रण करते हैं ।

विकासशील देशों को कर्जे में डुबा कर विकसित देशों का गुलाम बनाते हैं ।

ग्रुप7,20 और 30 इन्वेस्टमेन्ट बेन्कों के फायनान्शियल रेग्युलेटर और दलाली के काम करते है एक आर्थिक आतंकवादी की तरह ।
===========================================
इस समय इल्लुमिनाती एक सेक्रेट सोसाइटी के रूप में काम कर रही है......कहीं भी अपने आप को शो नहीं होने देती ,,पर मौजूद है हर जगह भारत में भी ,,जो भी लोग अमेरिका हित की......फोर्ड हित की.....सीआईए एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं समझ लीजिए इल्लुमिनाती वाले हैं या उनके एजेंट हैं ...सतर्क रहिये उनसे .....भारत की हर पार्टी में उनके एजेंट मौजूद हैं .......मिडिया तो समझिये उन्ही की है .......राष्ट्रवादी लोगो के वो दुश्मन होते हैं ........लन्दन में बैठे इल्लुमिनाती वाले राष्ट्रवादी लोगो को मरवा देते हैं या अपने में शामिल करने की कोशिश करते हैं .......आप एक विडिओ देख कर समझिये की कैसे इल्लुमिनाती अपने आपको सीक्रेट किये हुए हैhttps://www.youtube.com/watch?v=YE-Hvo0hSr0



मिल गया महाभारत में वर्णित विमान....

अक्सर अंग्रेजी स्कूलों के कुछ ज्यादा ही पढ़े लिखे तथा हरामी सेकुलरों में यह कहने का फैशन चल पड़ा है कि..... महाभारत तो एक काल्पनिक घटना है .... और, इसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है...!
लेकिन.... यह लेख एवं जानकारी ... उन मनहूस सेकुलरों के मुंह पर एक जोरदार तमाचा मारते हुए...... उनके मुंह पर कालिख पोत रहा है...!
दरअसल.... ओसामा बिन लादेन नामक इस्लामी आतंकवादी को खोजते हुए.....अमेरिका के सैनिकों को ...... अफगानिस्तान (कंधार) की एक गुफा में ........ 5000 साल पहले का "विमान"मिला है..... जिसे महाभारत काल का बताया जा रहा है.....!
सिर्फ इतना ही नहीं... बल्कि.... Russian Foreign Intelligence ने साफ़ साफ़ बताया है कि.... ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है.... और, जब इसका इंजन शुरू होता है तो बड़ी मात्रा में प्रकाश का उत्सर्जन होता है।
हालाँकि.... इस न्यूज़ को भारत के बिकाऊ मिडिया ने महत्व नहीं दिया..... क्यों कि, उनकी नजर में .... भारत के हम हिंदूओ की महिमा बढ़ाने वाली ये खबर .... सांप्रदायिक है...!!
ज्ञातव्य है कि.... Russian Foreign Intelligence Service (SVR) report द्वारा.........21 December 2010 को एक रिपोर्ट पेश की गयी .... जिसमे बताया गया है कि.... ये विमान द्वारा उत्पन्न एक रहस्यमयी TimeWell क्षेत्र है.... और, जिसकी खतरनाक electromagneticshockwave से ये अमेरिका के सील कमांडो मारे गये या गायब हो गये... तथा, इसी की वजह से कोई गुफा में नहीं जा पा रहा है ।
शायद आप लोगों को याद होगा कि.... महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी एवं मामा शकुनि गंधार के ही थे...!
महाभारत में ... इस विमान का वर्णन करते हुए कहा गया है कि.....
हम एक विमान ... जिसमे कि चार मजबूत पहिये लगे हुए हैं.... एवं परिधि में बारह हाथ के हैं... इसके अलावा 'प्रज्वलन पक्षेपत्रों ' से सुसज्जित है ..... परिपत्र 'परावर्तक' के माध्यम से संचालित होता है .... और, उसके अन्य घातक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं.
जब उसे किसी भी लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर पक्षेपित किया जाता है तो...., तुरंत वह 'अपनी शक्ति के साथ यह भस्म' कर देता है ... और, जो जाते समय जो एक 'प्रकाश की शाफ्ट' का उत्पादन किया.
( जाहिर सी बात है कि... महाभारत मेंविमान एवं मिसाइल की बात की जा रही है )
हमारे महाभारत के इसी बात को..... USMilitary के scientists ........ सत्यापितकरते हुए यह बताते हैं कि..... ये विमान 5000 हज़ार पुराना (महाभारत कालीन) है .....और, जब कमांडो इसे निकालने का प्रयास कर रहे थे तो ये सक्रिय हो गया...जिससे इसके चारों और Time Well क्षेत्र उत्पन्न हो गया ........ और, यही क्षेत्र विमान को पकडे हुए है......... इसीलिए , इस Time Well क्षेत्र के सक्रिय होने के बाद 8 सील कमांडो गायब हो गए।
जानकारी के लिए बता दूँ कि...... Time Well क्षेत्र........विद्युत चुम्बकीये क्षेत्र होता है...... जो हमारे आकाश गंगा की तरह सर्पिलाकार होता है ।
वहीं....... एक कदम आगे बढ़ कर.... Russian Foreign Intelligence ने तोसाफ़ साफ़ बताया कि....... ये वही विमान है जो संस्कृत रचित महाभारत में वर्णित है।
सिर्फ इतना ही नहीं..... SVR report का कहना है कि यह क्षेत्र 5 August को फिर सक्रिय हुआ था........ जिससे एक बार फिर electromagneticshockwave नामक खतरनाक किरणें उत्पन्न हुई... और, ये इतनी खतरनाक थी कि ..... इससे 40 सिपाही तथा trained German Shepherd dogs भीइसकी चपेट में आ गए।
ये प्रत्यक्ष प्रमाण है..... हमारे हिन्दू सनातन धर्म के उत्कृष्ट विज्ञान का......... और, साफ साफ तमाचा है उन सेकुलरों और, मुस्लिमों के मुंह पर..... जो हमारे हिन्दू सनातन धर्म पर उंगली उठाते हैं .... और, जिन्हें महाभारत एक काल्पनिक कथामात्र लगती है....!
जागो हिन्दुओं और पहचानो अपने आप को.......
पहचानो अपने गौरवशाली इतिहास को........!


क्या इल्लुमिनिटी प्रभुपाद के आध्यात्मिक मिशन को नष्ट करने की कोशिश कर रही है ?


क्या इल्लुमिनिटी प्रभुपाद के आध्यात्मिक मिशन को नष्ट करने की कोशिश कर रही है ?

विश्व प्रसिद्ध संत, भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, सांस्कृतिक राजदूत, विद्वान, समाज सुधारक और इंटरनेशनल कृष्ण चेतना संस्था के संस्थापक, [इस्कॉन], ने सितंबर 1970 को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी है:
"यह तथ्य है की एक महा भयावह आंदोलन (इल्ल्युमिनिटी) हमारे समाज के भीतर है ।"

अगर आपने ९/११ की कोइ डोक्युमेंटरी देखी है, तो आप को पता चल जाएगा कि इस दुनिया में महा भयावह आंदोलन इल्लुमिनिटी है । जिसका मूल लक्ष्य है भगवान के बिना एक नई विश्व व्यवस्था बनाना। दुनिया को आज मालुम हुआ है की चंद्रयात्रा फेक लेन्डिनग स्केम था । प्रभुपाद को १९६८ में ही पता चल गया था जब चंद्रयात्रा की तैयारी हो रही थी । उनके पास कोइ जासुस पत्रकार नही थे की उनको बताए, अपने धार्मिक दर्शन (his philosophy) से पता चल गया था । 26 दिसंबर 1968 को ए.एल.टाइम्स के पत्रकार द्वारा चंद्रयात्रा पर इन्टर्व्यु दिया । बता दिया की इल्लुमिनिटी कैसे सभी मुख्यधारा के मीडिया को नियंत्रण करती है ताकि लोगों को क्या क्या जानकारी सुनानी है वो ही सुनाते रहे, वही दिखाते रहे । नकली चाँद लैंडिंग घोटाले के माध्यम से जनता के टेक्स के अरबों डॉलर की बरबादी की बातें उजागर होने पर इल्ल्युमिनिटी वाले परेशान हो गये ।

इल्ल्युमिनिटी प्रभुपाद के बुनियादी सिध्धांत जान गई; मांस नही खाना, नही कोई नशा, कोई अवैध सेक्स नही, कोई जुआ नही, महिलाओं का पिछा नही, अगर जनता जागरूक हो कर उनका अनुकरण करती हैं तो अपनी आसुरी सभ्यता बनाने के सपने खतम होते थे ।

"हरे कृष्ण आंदोलन के तेजी से फैलने से पश्चिमी आसुरी सभ्यता की नींव हिल गई है, एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ ने कहा है, हरे कृष्ण आंदोलन एक महामारी की तरह फैल रहा है, हमे इसे रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए, वरना यह एक दिन सरकार पर कब्जा कर सकते हैं । यह हमारी सफलता के लिए एक अच्छा प्रमाण पत्र है, लेकिन अब समय आ गया है हम मजबूत विरोधी बने "[रामकृष्ण बजाज, VRINDABAN, 1 नवम्बर, 1976 को श्रील प्रभुपाद का पत्र]

इसलिए इल्ल्युमिनिटीने 1969-70 में हरे कृष्ण आंदोलन में अपने कुछ प्यादे लगाए और उन के माध्यम से अंत में संस्था का पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया ।

इल्ल्युमिनिटी के भायानक प्यादोंने 1977 में प्रभुपाद को एक कमरे में कैद कर दिया, अत्याचार और जहर दे कर मार दिया ।

“प्रभु यीशु मसीह को मार डाला गया था । तो ऐसा करने का प्रयास हो सकता है, वे मुझे भी मार सकते है. "[श्रील प्रभुपाद एक कक्ष वार्तालाप 3 मई 1976, होनोलूलू से]

" मेरा यह अनुरोध है की अंतिम चरण में मुझे यातना नहीं देना, मौत ही देना ।" [नवम्बर 3 एक कक्ष वार्तालाप से श्रील प्रभुपाद, 1977, वृन्दावन, भारत]

"किसी ने कहा मुझे जहर दिया गया है, यह संभव है । "[श्रील प्रभुपाद एक कक्ष वार्तालाप 9 नवंबर 1977, वृन्दावन, भारत से]

"मुझे बंद कमरे में न रखें ...... सभी गंभीरता से विचार करो और मुझे जाने दो । किसी ने मुझे जहर दिया है ।" [श्रील प्रभुपाद एक कक्ष बातचीत 10 नवंबर 1977, वृन्दावन, भारत से]

"आप दुनिया के इतिहास में पता लगाओ, आप देखोगे, कृष्ण या भगवान के लिए जो काम कर रहे हैं उन व्यक्तियों को हमेशा सताया गया है ।" [श्रीमद भागवत व्याख्यान 7.9.8 सिएटल, 21 अक्तूबर, 1968 ]

श्रील प्रभुपाद के भौतिक प्रस्थान (निधन) के बाद इन इल्ल्युमिनिटी के प्यादों ने, प्रभुपाद के यहूदी चेलों के साथ मिलकर, तुरंत इस्कॉन पर पूरा नियंत्रण कर लिया, कृष्ण के आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेम के प्रसार के लिए जो धन और संसाधन थे उस पर कबजा कर लिया ।

खुद को श्रील प्रभुपाद के झूठे उत्तराधिकारी की घोषणा करते हुए वे उनके अनुयायियों के बच्चों की छेड़छाड़ सहित अनगिनत नृशंस कृत्यों का प्रदर्शन करने लगे । उनके खिलाफ कोइ खड़ा होता था तो उसे मजबूर कर के बाहर किया जाता था, कुछ हत्या भी कर दी गई ।

श्रील प्रभुपाद द्वारा स्थापित स्कूले मूल रूप से बच्चों को भगवान के पवित्र प्रेम के संदेश को पढ़ाने के लिए बनी थी । उन स्कूलों में इस्कोन का मुखौटे पहने राक्षसोंने बाल उत्पीड़न के मामले इतने बढा दिये जीस के फल-स्वरूप आज पिडितों द्वारा जो केस किये गये हैं, $ 400000000 के दंड के बाद भी उनका प्रायच्चित पूरा नही होगा । अदालत के मामले में इस्तेमाल किये गये सबूतों को ऐसे बनाये गये की दोष खूद प्रभुपाद पर लगे । ज्यादा धन की लालचमें अपराधी और पिड्तों के, दोनों साईड के वकिल और न्यायतंत्र मिलकर मामलों को विकृत स्वरूप देते रहे हैं ।

प्रभुपाद को जहर देने के बाद, इन इल्ल्युमिनिटी प्यादों ने तुरंत ही व्यवस्थित रीत से उन के आध्यात्मिक संदेश के शुद्ध लेखन बदलकर उस में जहर भरना शुरू कर दिया । हाल ही में अपने मुख्य एजेंटों में से एक, दुनिया के मीडिया की मदद से, प्रभुपाद के लिए दुष्प्रचार किया की वो एक बच्चों का दुरुपयोग करने वाले पंथ के नेता थे , जब की ये इल्ल्युमिनिटी की शैतानी दुनिया ही सबसे संगठित पंथ हैं जो बच्चों को नशेड़ी, उनका यौन शोषण, एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर रही है ।

[search the internet for SATANISM & THE CIA: International Trafficking in Children by Ted Gunderson, the 27-year FBI veteran, former Los Angeles Senior Special Agent]

उन्होंने कृष्ण चेतना के लिए इंटरनेशनल सोसायटी बाल उत्पीड़न पंथ के साथ खड़ा कर दिया है और प्रभुपाद को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहे हैं ।

इस प्रकार हम इल्ल्युमिनिटी के तीन पॅटर्न देख सकते हैं, कृष्ण चेतना आंदोलन को नष्ट करना, प्रभुपाद के मूल दिव्य लेखन का नाश और उनके नाम का उपयोग कर के शैतानीं लेखकों का ज्ञान वाली पुस्तकें खपा कर दुनिया पर प्रभुत्व पाने के उनके एजेंडे की रक्षा के लिए धर्म में शैतानी संदेश शामिल करना और उसका का प्रचार करना । अभी प्रभुपाद के नाम से ही जानबूझकर प्रभुपाद की मूल पुस्तक है ऐसे जूठे प्रचार से भारी मात्रा में [55 लाख से ऊपर] किताबें वितरित कि गई है । बेचने के लिए प्रदर्शन भी किये गये है ।

शुद्ध भक्त को बदनाम करने के उनके इन प्रयास से वे इन मौलिक लेखन और उसकी शुद्ध आंदोलन की दिशा में एक जन उदासीनता और घृणा पैदा करने की उम्मीद रखते हैं । इस प्रकार पूरी दुनिया में शुध्ध आध्यात्मिकता साकार करने का माहौल पूरी तरह से प्रतिकूल हो जाता है ।

हम इस ग्रह पर प्रभुपाद की शारीरिक अभिव्यक्ति के अंतिम दिनों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि अंतिम महिनों उन को इल्ल्युमिनिटी के एजेंटों द्वारा कमरे में बंद कर दिया गया था उस से पहले नियमित रूप से एक वर्ष से अधिक समय से आर्सेनिक दिया जाता था और प्रशासित किया गया था । वो मात्र दर्द और पीड़ा में, एक नश्वर के रूप में नहीं मरे थे ।

श्रील प्रभुपाद ने अपनी आखरी वक्त तक अपने दिव्य पुस्तकों का अनुवाद जारी रखा । वो व्यक्तिगत रूप से इन राक्षसों द्वारा परेशान किये जाते रहे थे, लेकिन आम लोगों के लिए, जो कृष्ण चेतना के अभाव में पीड़ित थे, उनके लेये पूजनिय थे । मरते समय भी श्रील प्रभुपाद कृष्ण चेतना का प्रचार करने की कोशिश कर रहे थे । वास्तव में श्रील प्रभुपाद आत्म - बोध के सर्वोच्च स्तर पर बिराजमान एक संत का लक्षण प्रकट कर रहे थे । एक तरफ वह अपने ही कष्टों के प्रति सहिष्णु थे और दूसरी तरफ वह दयालु थे ।

हमने यह जानकारी इस लिए संकलित की है ताकी श्रील प्रभुपाद की बेदाग चरित्र की रक्षा हो सके और जनता को यह स्पष्ट कर दें की अब श्रील प्रभुपाद द्वारा स्थापित शुद्ध हरे कृष्ण आंदोलन नहीं है बल्की इस पंथ भक्तों की पोशाक में जलते इम्पोसट्र्स के एक समूह की विनाश लीला है ।
इन इम्पोसट्र्स ने हर स्तर पर श्रील प्रभुपाद के मार्गदर्शन की उपेक्षा की है, विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा के संबंध में ।

ये बच्चे भगवान की भेंट होते हैं, और हमे उन्हें बचाने के लिए बहुत सावधान रहना चाहिए । ये साधारण बच्चे नहीं हैं, वे Vaikuntha [आध्यात्मिक] बच्चे हैं, और हम उन्हें कृष्ण चेतना में आगे अग्रिम करने का मौका दे सकते हैं बहुत भाग्यशाली हैं हम । यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, उपेक्षा मत करो, या भ्रमित भी मत बनो । आपका कर्तव्य बहुत स्पष्ट है. "[अरुंधति, एम्स्टर्डम, 30 जुलाई, 1972 को श्रील प्रभुपाद पत्र]

भले इल्लुमिनिटी संस्था में घुसपैठ करने में सफल हो कर आध्यात्मिकता को मृत लाश में बदल दे या धार्मिक कट्टरपंथियों के एक पंथ में बदल दे, लेकिन वे प्रभुपाद की वास्तविक आध्यात्मिक आंदोलन को नष्ट करने में सक्षम नहीं होगा ।