अल्लाह की धमकी
अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى أَوْلِيَاءَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ مِنْكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ إِنَّ اللَّهَ لا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ ﴾ [المائدة : 51].
“ऐ विश्वासियो (ईमानवालो !), तुम यहूदियों और ईसाईयों को दोस्त न बनाओ, यह तो आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं, तुम में से जो कोई भी इनसे दोस्ती करे तो वह उन्हीं में से है, अल्लाह तआला ज़ालिमों को कभी हिदायत नहीं देता।
सूरतुल माइदा-5 : 51).
कुरान में गैर मुस्लिमों , से मित्रता करने को अनेकों बार निषिद्ध किया है , जैसे इस आयत में अल्लाह तआला ने उल्लेख किया है कि मुसलमानों में से जो व्यक्ति यहूदियों और ईसाईयों से दोस्ती करेगा, वह उन्हें दोस्त बनाने के कारण उन्हीं में से हो जायेगा। तथा एक अन्य स्थान पर वर्णन किया है कि उनसे दोस्ती रखना अल्लाह की अप्रसन्नता (क्रोध) और उसके प्रकोप में अनंत के लिए रहने का कारण है, और यह कि यदि उनको दोस्त बनाने वाला मुसलमान होता तो उन्हें दोस्त न बनाता, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान हैः
﴿تَرَى كَثِيرًا مِنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَنْ سَخِطَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ وَلَوْ كَانُوا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالنَّبِيِّ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَاءَ وَلَكِنَّ كَثِيرًا مِنْهُمْ فَاسِقُونَ﴾ [المائدة: 80-81]
“आप उनमें से अघिकांश लोगों को देखेंगे कि वे काफिरों से दोस्ती करते हैं, जो कुछ उन्हों ने अपने आगे भेज रखा है वह बहुत बुरा है, (यह) कि अल्लाह (तआला) उन से नाराज़ हुआ और वे हमेशा अज़ाब में रहेंगे। अगर वे अल्लाह पर, पैगंबर और जो उनकी तरफ उतारा गया है, उस पर ईमान रखते तो वे काफिरों को दोस्त न बनाते, परंतु उन में से अधिकांश लोग दुराचारी हैं।
सूरतुल माइदा-5 : 80, 81).
तथा एक अन्य स्थान पर, उनसे घृणित करने के कारण को स्पष्ट करते हुए, उन्हें दोस्त बनाने से मना किया है, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है :
﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَتَوَلَّوْا قَوْمًا غَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ قَدْ يَئِسُوا مِنْ الآخِرَةِ كَمَا يَئِسَ الْكُفَّارُ مِنْ أَصْحَابِ الْقُبُورِ ﴾ [الممتحنة : 13].
“ऐ विश्वासियो (मुसलमानो), तुम उस क़ौम से दोस्ती न करो, जिन पर अल्लाह का क्रोध (प्रकोप) आ चुका है, जो आखिरत से इस तरह निराश हो चुके हैं जैसेकि मरे हुए क़ब्र वालों से काफिर मायूस हो चुके हैं।
अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَتَّخِذُوا الْيَهُودَ وَالنَّصَارَى أَوْلِيَاءَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ مِنْكُمْ فَإِنَّهُ مِنْهُمْ إِنَّ اللَّهَ لا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ ﴾ [المائدة : 51].
“ऐ विश्वासियो (ईमानवालो !), तुम यहूदियों और ईसाईयों को दोस्त न बनाओ, यह तो आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं, तुम में से जो कोई भी इनसे दोस्ती करे तो वह उन्हीं में से है, अल्लाह तआला ज़ालिमों को कभी हिदायत नहीं देता।
सूरतुल माइदा-5 : 51).
कुरान में गैर मुस्लिमों , से मित्रता करने को अनेकों बार निषिद्ध किया है , जैसे इस आयत में अल्लाह तआला ने उल्लेख किया है कि मुसलमानों में से जो व्यक्ति यहूदियों और ईसाईयों से दोस्ती करेगा, वह उन्हें दोस्त बनाने के कारण उन्हीं में से हो जायेगा। तथा एक अन्य स्थान पर वर्णन किया है कि उनसे दोस्ती रखना अल्लाह की अप्रसन्नता (क्रोध) और उसके प्रकोप में अनंत के लिए रहने का कारण है, और यह कि यदि उनको दोस्त बनाने वाला मुसलमान होता तो उन्हें दोस्त न बनाता, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान हैः
﴿تَرَى كَثِيرًا مِنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَنْ سَخِطَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَفِي الْعَذَابِ هُمْ خَالِدُونَ وَلَوْ كَانُوا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالنَّبِيِّ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا اتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَاءَ وَلَكِنَّ كَثِيرًا مِنْهُمْ فَاسِقُونَ﴾ [المائدة: 80-81]
“आप उनमें से अघिकांश लोगों को देखेंगे कि वे काफिरों से दोस्ती करते हैं, जो कुछ उन्हों ने अपने आगे भेज रखा है वह बहुत बुरा है, (यह) कि अल्लाह (तआला) उन से नाराज़ हुआ और वे हमेशा अज़ाब में रहेंगे। अगर वे अल्लाह पर, पैगंबर और जो उनकी तरफ उतारा गया है, उस पर ईमान रखते तो वे काफिरों को दोस्त न बनाते, परंतु उन में से अधिकांश लोग दुराचारी हैं।
सूरतुल माइदा-5 : 80, 81).
तथा एक अन्य स्थान पर, उनसे घृणित करने के कारण को स्पष्ट करते हुए, उन्हें दोस्त बनाने से मना किया है, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है :
﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا تَتَوَلَّوْا قَوْمًا غَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ قَدْ يَئِسُوا مِنْ الآخِرَةِ كَمَا يَئِسَ الْكُفَّارُ مِنْ أَصْحَابِ الْقُبُورِ ﴾ [الممتحنة : 13].
“ऐ विश्वासियो (मुसलमानो), तुम उस क़ौम से दोस्ती न करो, जिन पर अल्लाह का क्रोध (प्रकोप) आ चुका है, जो आखिरत से इस तरह निराश हो चुके हैं जैसेकि मरे हुए क़ब्र वालों से काफिर मायूस हो चुके हैं।
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